बज़ट





इस बजट ने फिर से फूंकी,चिता मेरे अरमानो की.

मेरा ही चेहरा कहता सच , मेरे नए बहानों की.

बच्चों की फरमाइश लेकर,दफ्तर रोज निकलता हूँ,

आते-आते फट जाती है , सूची उन सामानों की.

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