मासूम आंसू.







कविता

          


कल रात आँखों की गहराई से,


मेरे अश्क,


पलकों के उपर चढ़ गये.


ख़ुदकुशी की नियत से,


कोसों आगे बढ़ गये.


बेबस उदास,


करने को तुम्हारी तलाश,


सारा दिन सारी रैन,


गुमशुम अधीर बेचैन,


आँखों की धारा से,


लड़ते रहे, हारते रहे,


अधखुली पलकों के बीच,


बैठकर तुम्हें निहारते रहे.


पर तुम नही आई,


चाहती तो उन्हें,


अपनी पलकों में 


सज़ा सकती थी.


उन्हे आत्महत्या से,


बचा सकती थी.


मगर अफ़सोस,


तुम्हारे इंतजार में,


रह-रह कर सब झरते रहे


मेरे मासूम से आँसू,


टॅप-टॅप कर गिरते रहे मरते रहे.


                    जय सिंह"गगन"

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