मर्यादा .





कुछ कसाब के अपने हैं, कुछ अफजल के रखवाले हैं.


संसद से सत्ता तक बिखरे, बस केवल घोटाले हैं.

जब चाहें तब बेच रहे हैं ,मान और मर्यादाओं को.

हमको कहते तुम भी पूजो, इन गुंडों दादाओं को.

श्वेत वस्त्र के मैले पन में, इनका कोई कसूर नहीं है.

अपनी ही सच्चाई सुनना, इनको ही मंजूर नहीं है.

भूल गए क्या मासूमों को, पल पल तुमने नोचा कैसे.

डर कर तुमसे झुक जाएँ हम, आखिर तुमने सोचा कैसे.

अगर तुम्हें सम्मान चाहिए, तो खुद को समझाना होगा.

उम्मीदों की नई रोशनी, जन-जन तक पहुंचाना होगा.

यह आवाम मिटा दे तुमको, वह दिन कोई दूर नहीं है.

लोकपाल से कम का सौदा, अब इसको मंजूर नहीं है.

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