बुधवार, 13 जनवरी 2016

सवाल



थाम लिया गर हाँथ तेरा तो

हाल सोच ले क्या होगा।
अब तक सिर्फ खैरियत पूछी
उठने लगे सवाल कई।

तुम्हारा शहर



खुशबू अंगूरी बेलों सी ,है बिखरा नशा हवाओं में।
यह शहर तुम्हारा शहर नहीं ,लगता जैसे मयखाना हो।

यार जुलाहे



मैं रोया जग खूब हंसा है यार जुलाहे।
इश्क़ मोहब्बत एक नशा है यार जुलाहे।
हो न जाय बदनाम कहूँ तो कैसे कह दूं।
मन मंदिर में कौन बसा है यार जुलाहे।

ख्वाब



पलकों से जो टूटे आंसू
उनको गंगाजल लिख डालूँ।
ख्वाबों का संसार सजा कर
उनको ताज महल लिख डालूँ।
भीगे भीगे होंठ हिले तो
कतरा कतरा शब्द गिरे।
शब्दों को छंदों में बाँधूं
तुम पर एक ग़ज़ल लिख डालूँ।