गगन
गुरुवार, 18 सितंबर 2014
कुर्सी
रोजी-रोटी घर की चिंता खबरें आने-जाने की.
यह कुर्सी ही राजदार है मेरे हर अफ़साने की.
कोशिश
मुक्त कर दिया सूरज को, कल उसको भी घर जाना है.
अगली कोशिश आसमान से, चाँद उठा कर लाना है.
"गगन"
मुझे तुम याद कर लेना.
न हो मेले में जब मस्ती, मुझे तुम याद कर लेना.
बिखरने जब लगे हस्ती, मुझे तुम याद कर लेना.
तुम्हारा शौक इस दरिया के अक्सर पार जाना है.
भंवर जब रोक ले कश्ती, मुझे तुम याद कर लेना.
“गगन”
हासिल.
ज़रा नादान था ये दिल, मगर समझा लिया हमने.
हुआ कुछ भी नहीं हासिल मगर सब पा लिया हमने.
लिखी थी नज्म, जो हमने, कभी तेरी जुदाई में.
जो तेरी याद आयी तो, उसे ही गा लिया हमने.
“
गगन
”
नई पोस्ट
पुराने पोस्ट
मुख्यपृष्ठ
सदस्यता लें
संदेश (Atom)