गुरुवार, 13 मार्च 2014

रमुआ अउर टिफिन


बघेली कविता.
रमुआ अउर टिफिन 

एक दिन मास्टर साहब
दुपहर कइ भुखाने
कक्षा म सकाने
न केहू से पूछिनि न बोलिनि 
रमुआ क बस्ता खोलिनि 
अउ ओसे टिफिन मारि दिहिनि 
जउन बपुरा लाबा तइ 
सगला झारि दिहिनि 
सेधान चाटत रहे तबइ 
रमुआ आइ ग 
दिखिसि त चउआइ ग 
मास्टर साहब सोचिनि 
जो एक हडकाउब 
कुछु बताउब
त सार इया रोई 
गाँउ मोहल्ला माँ सगळे बोई.
एह से ओका बलाइनि 
सम्झाइनि 
कहिनी हम जानित हइ 
तइ सब जानत हसु 
हमका बहुत मानत हसु 
पइ इ बताउ हमार नाउ लउबे त न 
घरे माँ महतारी पूछी त बतउबे त न 
रमुआ कहिसि- मास्टर साहब 
अपना सेतिऊ चउआन हमन 
बिना मतलब क काहे परेशान हमन
हमका भुखान देखी त पूछी जरूर 
इ हम मानित हइ 
हमार महतारी ओका हम 
खुब जानित हइ 
कही के टिफिन नहीं खाए 
केउ चोराइ लिहिसि 
पइ आखिर हमहूँ 
अपनइ क चेला आहेंन 
कही देब नहीं अम्मा 
कक्षा म एक ठे सार कुकुर घुसा रहा 
उहइ खाइ लिहिसि .

जय सिंह”गगन”

बुधवार, 12 मार्च 2014

एक अरदाश.


तेरे जुल्फों की खुशबू से मदहोशी सी छा जाती है.
हो सके अगर तो ख़त मेरे सिरहाने रख कर मत सोना.
जय सिंह"गगन"

एतराज


मैं क्या लिक्खूं इस समाज के घटिया रीति-रिवाजों पर.
जब मुझको ही एतराज है खुद मेरे अलफाजों पर.

हिफाजत


केवल तेरी यादें लेकर शहर छोड़ कर आया हूँ.

दिल के टुकड़े वहीं पड़े हैं रखना उन्हें हिफाजत से.

गुजारिश.


मेरा दिल यूँ तडफता है बुरे हालात रोते हैं.
चले आओ अकेले हैं मेरे जज्बात रोते हैं.
ज़माने ने लगा रक्खी है जाने बंदिशें कितनी,
बिखरते ख्वाब आँखों में यूँ सारी रात रोते हैं.

आजमा लेना.


खुशी आजमा लेना गम आजमा लेना.
जितने भी चाहो सितम आजमा लेना.
ये दिल कर दिया है तुम्हारे हवाले,
इसे जब भी चाहो सनम आजमा लेना.