सोमवार, 30 सितंबर 2013

भाईचारा.

मंदिर देखा मस्जिद देखी,देख लिया गुरुद्वारा मैने.
उपर वाले दर-दर जाकर केवल तुझे पुकारा मैने.
मैं दंगों के बीच गया था,खोजा तुझे गुबारों में.
तूँ शायद मिल जाए मुझको लाशों के अंबारों में.
घाटी पर यह मातम कैसा,उठती हुई घटाओं से,
फिर से क्या आज़ाद हो गयी,गंगा तेरी जटाओं से.
सीमाओं पर कत्ल किया है,फिर से कुछ गद्दारों ने
घर की बहू-बेटियाँ लूटी, धरम के ठेकेदारों ने.
सारी न्याय व्यवस्था चुप है,होते क्रूर गुनाहों पर.
सामूहिक दुष्कर्म हो रहे,गाँव शहर चौराहों पर.
अवनि और अंबर दहलाया,नित होती हत्याओं ने.
धन संपदा वैभव लूटा,श्वेत वस्त्र नेताओं ने.
रहम कहाँ करता है कोई,बेबस और अनाथो पर,
भूखे और कुपोषित बच्चे,मरते हैं फुटपाथो पर.
डर से तन मन रूह कापती,पूजा और अजानो से.
मंदिर मस्जिद भरे पड़े हैं,दहशत के सामानो से.
जन मानस से रोज़गार के,अवसर कोसों दूर हो गये.
सपने राजनीति के चलते,टूटे चकनाचूर हो गये.
आम आदमी चीख रहा है,हे अल्ला हे दाता सुन ले,
तकदीरों को गढ़ने वाले,प्यारे भाग्य-बिधाता सुन ले.
तुझको पत्थर कहने वाली, रूहों को शर्मिंदा कर दे.
बच्चों की किल्कारी माँ की,उम्मीदों को जिंदा कर दे.
हिंदू मुस्लिम मंदिर मस्जिद पूजा और अज़ान एक हो.
एक प्रार्थना एक दुआ हो अल्ला और भगवान एक हो.
शिकवा गिला रहे ना कोई यह एहसास दुबारा भर दे.
"अनवर"और"गगन"के मन में फिर से भाईचारा भर दे.

जय सिंह"गगन"

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