रविवार, 11 अगस्त 2013

रूको अभी मत जाओ सावन.

रूको अभी मत जाओ सावन.

तुमको मेरा प्यार पुकारे.
पायल की झंकार पुकारे.
इन आँखों की निदिया रोए.
चूड़ी कंगन बिंदिया रोए.

तुमसे यह गलहार माँगता.
यह सोलह श्रिगार माँगता.
फिर तन का स्पंदन दे दो.
रुखसारों का चुंबन दे दो.

घन होंगे बंशीवट होंगे.
वन कानन में मोर न होगा.
सखियाँ होंगी झूले होंगे,
पर बैरी चितचोर न होगा.

पीपल होगा पनघट होगा.
पर सूना सा आलम होगा.
यौवन होगा मस्ती होगी.
दूर मगर फिर प्रीतम होगा.

नैनो में अभिलाषा होगी.
बाट जोहती राहें होगी.
रूखी सी मुस्कान समेटे,
इंतज़ार में बाहे होगी.

खामोशी की चादर ओढ़े.
होठों पर रसधार न होगी.
आने का संदेशा लाती,
ठंडी मस्त बयार न होगी.

पनघट की हँठखेली सहमी.
दुल्हन नयी नवेली सहमी.
अभी अधूरी बात मिलन की.
ढल ना जाए रात मिलन की.

तन तड़फ़ा है,जहन जला है.
बिरह में सारा बदन जला है.
सब कुछ सहज सरल हो जाए.
रोम-रोम शीतल हो जाए.

ठहरो इन बाहों में झूलो,अधरों को अधरों से छू लो,
रस सारा पी जाओ सावन.
रूको अभी मत जाओ सावन,
रूको अभी मत जाओ सावन.


जय सिंह"गगन"

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