रविवार, 11 अगस्त 2013

गुड़िया कितनी प्यारी हो तुम.

गुड़िया कितनी प्यारी हो तुम.

गोरा शुर्ख चमकता चेहरा.
चंचल शोख दमकता चेहरा.
दिलकश और नशीली आँखें.
भोली सी शर्मीली आँखें.

तुम हँसते फूलों के जैसी.
तुम सावन झूलों के जैसी.
नटखट शोख अदाएँ तेरी.
जुल्फे घनी घटायें तेरी.

खिलते हुए गुलाबों सी तुम.
हर शायर के ख्वाबों सी तुम.
घिरती हुई घटाओं सी तुम.
महकी हुई फिजाओं सी तुम.

आँखें हैं मयखाना कोई.
कुदरत का नज़राना कोई.
लहराती डाली के जैसी.
सुबहा की लाली के जैसी.

होठों पर लाली क्या कहने.
कानो पर बाली क्या कहने.
ऐसी चमक नज़ारों में है.
जो तेरे रुखसारों में है.

सूरज सुबह जगाए जिसको.
चाँद देख शरमाये जिसको.
छन-छन करती पायल तेरी.
नज़रें करती घायल तेरी.

ईद और दीवाली जैसी.
तुम पूजा की थाली जैसी.
तुम हो एक कहानी जैसी.
परियों की तुम रानी जैसी.

हर महफ़िल में छाने वाली.
सबको सदा हंसाने वाली.
तुम हो एक दुआ के जैसी.
महकी हुई हवा के जैसी.

हर मुश्किल मे हसने वाली
मन-मंदिर में बसने वाली.
बसी रूह में, छाई ऐसी.
चंदन में खुशबू के जैसी.

रंगत लिए बहारों जैसी.
तुम हो चाँद सितारों जैसी.
हर उलझन सुलझाने वाली.
गम में सदा हंसाने वाली.

गम को कैसे पीना सीखे.
कोई तुमसे जीना सीखे.
तुम लगती अपनो के जैसी.
सच होते सपनो के जैसी.

तुम चाहत हो,तुम हसरत हो,
यार बहुत ही न्यारी हो तुम,
गुड़िया कितनी प्यारी हो तुम.
गुड़िया कितनी प्यारी हो तुम.


जय सिंह"गगन"

जहन्नुम यहीं है.

चंदन है,रोली है,कुमकुम यहीं है.
खुश्बू यहीं है,तरन्नुम यहीं है.
कर्मों का फल तो मिलेगा यहीं पर,
जन्नत यहीं है,जहन्नुम यहीं है.

जय सिंह"गगन"

रूको अभी मत जाओ सावन.

रूको अभी मत जाओ सावन.

तुमको मेरा प्यार पुकारे.
पायल की झंकार पुकारे.
इन आँखों की निदिया रोए.
चूड़ी कंगन बिंदिया रोए.

तुमसे यह गलहार माँगता.
यह सोलह श्रिगार माँगता.
फिर तन का स्पंदन दे दो.
रुखसारों का चुंबन दे दो.

घन होंगे बंशीवट होंगे.
वन कानन में मोर न होगा.
सखियाँ होंगी झूले होंगे,
पर बैरी चितचोर न होगा.

पीपल होगा पनघट होगा.
पर सूना सा आलम होगा.
यौवन होगा मस्ती होगी.
दूर मगर फिर प्रीतम होगा.

नैनो में अभिलाषा होगी.
बाट जोहती राहें होगी.
रूखी सी मुस्कान समेटे,
इंतज़ार में बाहे होगी.

खामोशी की चादर ओढ़े.
होठों पर रसधार न होगी.
आने का संदेशा लाती,
ठंडी मस्त बयार न होगी.

पनघट की हँठखेली सहमी.
दुल्हन नयी नवेली सहमी.
अभी अधूरी बात मिलन की.
ढल ना जाए रात मिलन की.

तन तड़फ़ा है,जहन जला है.
बिरह में सारा बदन जला है.
सब कुछ सहज सरल हो जाए.
रोम-रोम शीतल हो जाए.

ठहरो इन बाहों में झूलो,अधरों को अधरों से छू लो,
रस सारा पी जाओ सावन.
रूको अभी मत जाओ सावन,
रूको अभी मत जाओ सावन.


जय सिंह"गगन"