मंगलवार, 2 जुलाई 2013

एक ठे सवाल.

बघेली कविता
एक ठे सवाल.

मास्टर साहब कक्षा मा
गणित पढ़ाईनि,
सगला सवाल बोर्ड मा
जोड़ि घटाइ कइ
समझाईंनि.
फेर कहिनि के
अच्छा लरिकउ
सही-सही बताबा.
जउन हम पढ़ाएँन
का समझ मा आबा.
कुछु समझिनि त
दोहराई दीहिनि.
जउन नहीं समझिनि
त सेंतीउ मूड हलाई दीहिनि.
ईया प्रगति देखि कइ
मास्टर साहब क करेजा
खुशी से पुलुकि उठा.
मन सवाल पूछइ क
कुलुक़ि उठा.
कहिनि-कलुआ तइ इहन आउ.
एक ठे प्रश्न पूछी थे बताउ.
मानि ले तोर ठाकुर
चारि ठे मनई साटत हँ.
उ चारिउ मिलि कइ
ओन्कर खेत चारि दिन म 
काटत हाँ.
त जो उ दूइ ठे मनई सटिहीं.
त उ दूनउ मिलिकै
उहइ खेत कइ दिन मा कटिहीं?
सवाल सुनतइ
रमुआ क मन डोलि उठा.
उ खट्टइ बोलि उठा.
मास्टर साहब अपना हमका
दंत निपोर न बनाई.
ग़लत-सलत सवाल
हमसे न लगवाई.
ज़्यादा हुशियारी न छाटी.
अरे जउन खेत पहिलेंन कटा हइ
ओका केउ काहे काटी.

जय सिंह"गगन"

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