सोमवार, 8 जुलाई 2013

मुरगी.

बघेली कविता.
मुरगी.
 मास्टर साहब,
कक्षा म नज़र दउड़ाइनि,
पीछे के कुर्सी म,
रमुआ क रोबत पाइनि.
कहिनि-ससू सगला दिन,
कक्षा म सोबत हसु.
अब का होइ ग?
काहे रोबत हसु?
रमुआ कहिसि-मास्टर साहब,
इआ गणित वाली मैडम,
आजु आपन घरे क गुस्सा,
हमरेन उपर उतारिसि हइ.
हम ओका मुरगी कहि दिहेन त,
बलभर मारिसि हइ.
मास्टर साहब कहिनि-
ससू तइ दतनिपोर क,
दतनिपोरइ रहे.
अरे मैडम क मुरगी काहे कहे?
रमुआ कहिसि-मास्टर साहब,
हमहूँ पढ़े हमन,
आख़िर कउनउ सवाल पर,
कब तक चुप्प रहब?
जउन रोज हमका
कापी म अंडा देई,
ओका मुरगिनि न कहब.


जय सिंह"गगन"

कलुआ अउर महट्टर.

बघेली कविता.
कलुआ अउर महट्टर.
 मास्टर साहब कलुआ क,
अपने लगे बलाइनि,
ज़ोर से हड़काइनि,
कहिनि-ससू तइ त
हमका हैरान करे हसु,
अब का कही के कतना,
परेशान करे हसु.
तइ हमार करेजा काहे
चाबत थे.
सगला लरिका
एकट्ठइ टाइम से आबत हाँ,
तइ रोज लेट काहे आबत थे?
इया सुनि कइ कलुआ क,
चंचल मन डोला,
उआ मास्टर साहब से बोला-
इ ससू सुअरिनि क झुँडि आहीं,
साथइ अइहीं.
इआ हमार दावा हइ.
पइ हम त शेर आहेन.
जउन का कबउ झुँडि म आबा हइ.

जय सिंह"गगन"

शनिवार, 6 जुलाई 2013

दौर.

एक दूजे के लिए बने हो,परिवर्तन का दौर न देखो.
वो भी कोई और न देखे,तुम भी कोई और न देखो.
"गगन"

शुक्रवार, 5 जुलाई 2013

पढ़ाई अउ ध्यान.

बघेली कविता.
पढ़ाई अउ ध्यान.

कक्षा म मास्टर साहब गरजें,
का रे रमुआ,
तइ जउन कठउता भर,
खाइ कइ परे हसु,
का जउन हम सबक दिहे रहेन,
ओका करे हसु.
डेरातइ-डेरात रमुआ,
मास्टर क निहारिसि एक नज़र,
अउ धीरे से कहिसि-यस सर.
मास्टर साहब खुस होइ कइ कहिनि-
अच्छा त इहन आउ.
बीरबल के आही? हमका बताउ.
रमुआ सवाल सुनिसि.
कुछु मनइ-मन गुनिसि.
कहिसि-सर जब पढ़ेन तइ
तब लाग के चढ़ि ग.
पइ अपना के पुछतइ
एकदम दिमाग़ से उतरि ग.
मास्टर साहब ताउ म आईगें.
कहिनि-गदहा जिंदगी म
किताब देखु
तब न अक्षर पहिचानु.
पढ़ाई म थोरउ क ध्यान दे,
तब न एनका जानु.
ईया सुनिकइ रमुआ बोला-
सर हम गदहा हन,
ई मानित हइ.
पइ का अपनइ
रमेश औ महेश क जानित हइ?
मास्टर साहब बोलें-
हम मारब झापड़
हमका किहनी न बुझाउ.
ई ससू के आहीं
तहिनि बताउ?
रमुआ कुलुकि कइ कहिसि-
दिखेन न धइ गइ सगली चौहानी.
अरे अपने बिटिया पर
थोरउ क ध्यान देई,
त एनका जानी.


"गगन"

गुरुवार, 4 जुलाई 2013

मत तोडो तटबंधों को.


कितनी रूहें दफ़न हो गयी,समझाओ इन अंधों को.
झरने,नदियाँ ताल, चीखते,मत तोडो तटबंधों को.

"गगन"

मंगलवार, 2 जुलाई 2013

एक ठे सवाल.

बघेली कविता
एक ठे सवाल.

मास्टर साहब कक्षा मा
गणित पढ़ाईनि,
सगला सवाल बोर्ड मा
जोड़ि घटाइ कइ
समझाईंनि.
फेर कहिनि के
अच्छा लरिकउ
सही-सही बताबा.
जउन हम पढ़ाएँन
का समझ मा आबा.
कुछु समझिनि त
दोहराई दीहिनि.
जउन नहीं समझिनि
त सेंतीउ मूड हलाई दीहिनि.
ईया प्रगति देखि कइ
मास्टर साहब क करेजा
खुशी से पुलुकि उठा.
मन सवाल पूछइ क
कुलुक़ि उठा.
कहिनि-कलुआ तइ इहन आउ.
एक ठे प्रश्न पूछी थे बताउ.
मानि ले तोर ठाकुर
चारि ठे मनई साटत हँ.
उ चारिउ मिलि कइ
ओन्कर खेत चारि दिन म 
काटत हाँ.
त जो उ दूइ ठे मनई सटिहीं.
त उ दूनउ मिलिकै
उहइ खेत कइ दिन मा कटिहीं?
सवाल सुनतइ
रमुआ क मन डोलि उठा.
उ खट्टइ बोलि उठा.
मास्टर साहब अपना हमका
दंत निपोर न बनाई.
ग़लत-सलत सवाल
हमसे न लगवाई.
ज़्यादा हुशियारी न छाटी.
अरे जउन खेत पहिलेंन कटा हइ
ओका केउ काहे काटी.

जय सिंह"गगन"

बी.एड. त सब पर भारी हइ.

बघेली कविता.
बी.एड त सब पर भारी हइ.
हरी भरी कक्षा हइ सुंदर,निकही सजी अँटारी हइ.
बी.एड. त सब पर भारी हइ,बी.एड. त सब पर भारी हइ.

सब अपने मर्ज़ी क मालिक,कुछु आइ रहें कुछु जाइ रहें.
कुछु कक्षा माही बईठे हँ,कुछु अगल-बगल लहराइ रहें.
कुछु बड़े सकन्ने से आमा,कुछु जाँ गोधुली बेला मा.
कुछु सटे पछीती बइठे हँ,कुछु खड़े पान के ठेला मा.

दिन भर देबिनि के पूजा मा हर लरिका बना भिखारी हइ.
बी.एड. त सब पर भारी हइ,बी.एड. त सब पर भारी हइ.

कुछु सल्ट पैंट उज्ज़र-बज्ज़र,कुछु रंग-बिरंगी सारी हँ.
कुछु नवा-नवेला छउना हँ,कुछु नर कुछु सुंदर नारी हँ.
हेड मुरलीधर बृंदावन क,कुछु उधौ अउर सुदामा हँ.
कउनउ हँ पूतना माई कस,कउनउ लोचन अभिरामा हँ.

जेठउ म हरिअरी छाई हइ,माहौल अमंगल हारी हइ.
बी.एड. त सब पर भारी हइ,बी.एड. त सब पर भारी हइ.

कुछु हमा पधारे कुर्सी पर,कुछु फिल्मी धुन मा गाइ रहें.
कुछु मुरलीधर के डब्बी से,बस काढ़ी कुलींजन खाइ रहें.
मास्टर बाबू सब चाहत हँ,बस रंग जमाई बी. एड. मा.
गुरुदल मा मची खलबली हइ, हम जाइ पढ़ाई बी. एड. मा.

कुछुअन के खातिर बी. एड. क ई,कक्षइ प्राण अधारी हइ.
बी.एड. त सब पर भारी हइ,बी.एड. त सब पर भारी हइ.

उ पढ़े हँ कउनउ अउर विषय,बी.एड. मा कूछो पढ़ावत हँ.
सूरदास कारी कामरि पर,कउनउ रंग चढ़ावत हँ.
कुछु खाइ टिफिन लरिकहरिनि क,गदहा कस पचके-फूले हँ.
कुछु मुरलीधर के काँधे म,बैताल सरीखे झूले हँ.

हइ प्राइवेट नौकरी तबउ, जलवा एनकर सरकारी हइ.
बी.एड. त सब पर भारी हइ,बी.एड. त सब पर भारी हइ.

बी. ए. अउर बी.एस.सी.वाले,लरिका हमा निहारे सोचा.
कब सूरज पच्छिउँ म निकरी,प्रभु अइहीं एंह द्वारे सोचा.
कतनउ इहन महीना बीता,कबउ न फ़िरिकइ झाकिनि.
घंटन बी. एड. माही घुसिकइ,सेतिउ-मेति क फाकिनि.

जइसइ रघुराई क ताके लंका म जनक दुलारी हइ.
बी.एड. त सब पर भारी हइ,बी.एड. त सब पर भारी हइ.

हँ लूंज-पुंज कुछु बॉल सखा,जे मनई देखि कइ भागत हँ.
हँ अइसन जइसइ सूरदास,कब सोबत हँ कब जागत हँ.
बीचइ म शोभित गुरु वशिष्ट,हइ जटा-जूट लहराइ रही.
कोने म सकुड़ी अरुंधती,बस मंद-मंद मुस्काई रही.

एंह जनक नंदिनी के आगे,लंका पति बना भिखारी हइ.
बी.एड. त सब पर भारी हइ,बी.एड. त सब पर भारी हइ.

कुछु कहत हँ ईमली क आमा,कुछु एकदम ख़ासमखास बने.
भीष्म पितामह बी. एड. क,ज्वाइन कइ तुलसी दास बने.
कक्षा लागइ सिंधु घाटी,मृत भांड पढ़ामा पाठ रोज.
घंटा दूई घंटा बाति करा,गोपिनि से जोरा गाँठि रोज.

हइ लका-लक्क सब सूट-बूट,माथे चंदन कइ धारी हइ.
बी.एड. त सब पर भारी हइ,बी.एड. त सब पर भारी हइ.

नई नवेली गोपिनि क हँ रण्ड-मुण्ड पछियान ससू.
इहन महट्टर पुँछत हँ जोड़ा तउ हबइ लुकान ससू.
रस-गोरस मुरलीधर लइगे,रितई दोहनि लटकाई हइ.
ग्वालन क छाछि धराइ कहीनि, ले चाटा ससू मलाई हइ.

जमुना कइ काली दह पैरत,बस एकइ कृष्ण मुरारी हइ.
बी.एड. त सब पर भारी हइ,बी.एड. त सब पर भारी हइ.

गहन अध्ययन बिती चला,हइ सूक्ष्म अध्ययन जारी.
अब जईहीं त कबउ न मिलिहीं,पुनि कइ प्राण पियारी.
कान्हा बहती जमुना माही,हान्थ मज़े से धोमा.
उधौ अउर सुदामा बपुरू,फफकि-फफकि कइ रोमा.

"गगनउ" के लाने हइ छाई, अब भादौ कस अंधियारी हइ.
बी.एड. त सब पर भारी हइ,बी.एड. त सब पर भारी हइ.

जय सिंह"गगन"