सोमवार, 20 मई 2013

शाम-ए-गम.



शाम-ए-गम अपनी कल इस तरह संवारा मैने.
काँच के टुकड़ों से पलकों को बुहारा मैने.

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें