शनिवार, 23 मार्च 2013

लरिका खिचरी खइहीं.



बघेली कविता.
लरिका खिचरी खइहीं.


झूर-झार अब मिली न देखा पका-पकाबा पइहीं.
आसउँ से स्कूली माही लरिका खिचरी खइहीं.

कइकइ कुल्ला बड़े सकन्‍ने बइठे पढ़इ दुआरे.
खिचरी-खिचरी रटत हँ सगला दिन दुपहर भिनसारे.
नबइ बजे से चारिउ कइती झोरा लइ मेंड़राइ परें.
खोरिया डारिनि बस्ता मा अउ स्कूली क धाइ परें.

थोपिहीं सगले गोड़े-हांथे मुहु सगला लभरइहीं.
आसउँ से स्कूली माही लरिका खिचरी खइहीं.

पहिले रहा त लरिकन काहीं अतना रहा सरेख़ा.
पढ़बे-लिखबे तबहिनि दादू खाइ क पउबे देखा.
अब देखा त लइकइ छूही पिढ़ई बस्ता रंगा.
पूछे- पांछे बनइ न एकउ का खा गा घा अंगा.

महतारी जो पढ़इ कहइ त इ खिसिआइ के धइहीं.
आसउँ से स्कूली माही लरिका खिचरी खइहीं.

कच्चा चाउर चाबि-चाबि कइ पेट रोज पिरबइहीं.
सगली राति न सोबइ देइहीं लइकइ लोटा धइहीं.
करजा सगळे मूडे होइ ग गोली अउर दबाई मा.
लूँड़ा लागइ स्कूली के खिचरी केर खबाई मा.

फइली सगले गाँउ कालरा अतनइ बिढ़ता लइहीं.
आसउँ से स्कूली माही लरिका खिचरी खइहीं.

सरपंचन का होइगइ चाँदी एनके खाइ-खबाबइ मा.
छोडि पढाई मास्टर लगिगें सब खिचरी परसाबइ मा.
केहू केर गिलासि फूटि गइ फूटि ग लोटा टाठी.
पहुँचे घरे त महतारी लइ धायी जरत लुआठी.

बाबू ज इ हीं पंडित जी क दस अक्षर गरिअइहीं.
आसउँ से स्कूली माही लरिका खिचरी खइहीं.

इ "मध्यान भोजन"लइ बूड़ा स्कूलन कइ शिक्षा.
आजु खबाई खिचरी सब फेरि मागाई भिक्षा.
राजनीति अब घुसि गइ सगळे घरे गाउ चउफेरे.
एँह खिचरी के नाते देखा रोज़ी मिली न हेरे.

राह चलत मनइनि क लुटिहीं कउनउ घरे सकइहीं.
आसउँ से स्कूली माही लरिका खिचरी खइहीं.

पढ़ा-लिखा भिखिआरी होइहीं अनपढ़ बनिहीं राजा.
एँह खिचरी के चलते देखा बजी देश क बाजा.
करा शिकाईति कहँउ जाइ कइ तूँ भोपाल औ दिल्ली.
एनके आगे सब लागत हँ जइसइ भीगी बिल्ली.

खईहीं पइसा"गगन" छानि कइ दाबि पान बिदूरइहीं.
आसउँ से स्कूली माही लरिका खिचरी खइहीं.

जय सिंह"गगन"

गुरुवार, 21 मार्च 2013

बघेली कविता.




बघेली कविता.

कक्षा मा मास्टर साहब,
आसउ के साल,
बोलिनि एक ठे सवाल-
कहिनि लरिकउ आपन आपन
दिमाग़ दउड़ाबा,
चला एँह प्रश्न क उत्तर बताबा.
मानिले रमुआ के बाप क,
सउ रूपिया हम दीन्हेंन,
करबाबइ क दवाई,
त आठ रूपिया सैकड़ा के दर से,
उ साल भरे मा,
हमका कतना लउटाई?
सवाल सुनतइ तउआइ कइ,
भ रमुआ खड़ा.
मास्टर साहब कुछू नहीं,
झट्टइ बोलि पड़ा.
मास्टर साहब सन्न रहिगें,
लाल होइगें,
कुर्सी पा गिरें निढाल होइगें.
कहिनि- अरे मूरख,
साल भर तइ एहीं कक्षा क,
सीढ़ी उतरे चढ़े हइ.
फेरउ अतने दिन मा,
तइ इहइ पढ़े हइ.
अरे गदहा हम जउन कहिथे,
नोट कइ लेहे,
एँह पढ़ाई के माथे 
पास होइ जये त कहे.
इ सुनि कइ रमुआ बोला-
मास्टर साहब,
हमार उत्तर ग़लत हइ,
इ हम मानेन.
पइ अपना हमरे बाप क,
बिल्कुल नहीं जानेंन.
देखि लेब, अपनउ एँही हमन,
हमहूँ एँही रहब.
ब्याज त ब्याज,
मूर पाइ जाब त कहब.

जय सिंह"गगन"

साक्षरता अभियान.



बघेली कविता.
साक्षरता अभियान.

अब अनाथ कस लरिका घूमा आजु के हिन्दुस्तान मा.
दिदी अउ बाबू पढ़इ चलेंगे साक्षरता अभियान मा.

बड़कउना लइ बस्ता धाबा कलुआ लइ कइ पाटी.
हर-बर्दा सब ढीलि पियारे पहुँचे चुपरे माटी.
छीँदा परा बगार चरि लिहिनि रामदीन कइ गइया.
चर्बाहन क लइकइ ओरहन पहुँचे समझू भइया.

कक्षा लागइ शुख़ीराम के तरकारी दूकान मा.
दिदी अउ बाबू पढ़इ चलेंगे साक्षरता अभियान मा.

पका खेत काटइ बिन परि ग सरि गें बाँध-बन्धोली.
बड़ी घोड़ अस बछिया मरि गइ बिन सूजी बिन गोली.
गोरू-रकरा मरत हाँ घर मा बिन चारा बिन पानी.
चउथेपन मा गीता बांची गाँउ क अहिरिनि कानी.

आख़िर कउन फ़ायदा हइ एँह 'क' से "कमला" ग्यान मा.
दिदी अउ बाबू पढ़इ चलेंगे साक्षरता अभियान मा.

नये-नये लरिकउने सगला सिगरेट बीड़ी धूका.
अउर बुढ़उने खाइ कइ सुरती चारिउ कइती थूका.
आधा समय बितामा ओहीं सगला पढ़इ-पढाबइ मा.
आधा साँझि-सकारे सगळे लरिकन का गरिआबइ मा.

'र' से "रोटी" कहाँ मिलइ अब 'म' से बने "मकान" मा.
दिदी अउ बाबू पढ़इ चलेंगे साक्षरता अभियान मा.

लरिका सब बरबाद होइ गएँ 'फ' से "फल" अउ "फरसा" मा.
आजु पतोहिया पढ़इ चली गइ गउना केर मदरसा मा.
बाहर देत हाँ लेक्चर घर मा अँगरेजी मा गारी.
डलहौजी का मेम बनी हइ रमुआ कइ महतारी.

नशा चढा हइ गांजा साही बुडबा अउर ज़बान मा.
दिदी अउ बाबू पढ़इ चलेंगे साक्षरता अभियान मा.

सगला गाँउ एकट्ठा होइकइ मारइ गप्प-सड़ाका.
चाहइ भले घरे मा घुसि कइ चोरबे मारा डाका.
मोहना केर पतोह छुइ दिहिसि शुकुलाईनि क पानी.
शुकुल पड़े त एक कइ दिहिनि दाई,बिटिया,नानी.

मास्टर जी का मूड़ फूटि गा "सब जन एक समान" मा.
दिदी अउ बाबू पढ़इ चलेंगे साक्षरता अभियान मा.

सरकारी कागज मा होइ ग साक्षर गाँउ बरउँठा.
सब नर-नारी पढ़े-लिखे हँ तबउ लगामा अउँठा.
इ साक्षरता कुच्छू नही बस पईसा कइ बरबादी.
रोज पढ़ा परिवार नियोजन तबउ बढ़इ आबादी.

अरबन रूपिया खाइनि नेता एहीं जन-कल्याण मा.
दिदी अउ बाबू पढ़इ चलेंगे साक्षरता अभियान मा.

काहे पईसा खर्च करति हइ एँह सब म बेकार का.
ईया जाइ समझाबा केऊ एँह भारत सरकार का.
पहिले जतना पढ़े-लिखे हाँ ओनकर जनम बनाबा.
ओके बाद मा बाकी सब का क,खा,ग,घा सिखबाबा.

जागी देश "गगन" जब शिक्षा पहुँची घरे मकान मा.
दिदी अउ बाबू पढ़इ चलेंगे साक्षरता अभियान मा.

जय सिंह"गगन"

बुधवार, 20 मार्च 2013

कलयुग बड़ा प्रबल हइ प्रभु जी.



बघेली कविता.
कलयुग बड़ा प्रबल हइ प्रभु जी.



भक्त हमा भक्तइ कस देखा ओनका कष्ट न दीन्हे.
कलयुग बड़ा प्रबल हइ प्रभु जी कबउ जनम न लीन्हे.

चारि साल से भईसिउ देखा एकउ नहीं बियानी.
माखन मिसिरी दूध मलाई मिला होइ त जानी.
मोल दूध के पइसा खातिर रोज़िगारी हाँ घेरे.
तरछी भर छाछ नाचइ क कहउ मिली न हेरे.

दहिउ समझि कइ रितई दोहनी फोरि-फारि न दीन्हे.
कलयुग बड़ा प्रबल हइ प्रभु जी कबउ जनम न लीन्हे.

रास रचउबे गारी देइहीं बिटिअन कइ महतारी.
पुलिस पकडि थाने पहुँचाई बीसन गोदा मारी.
कहँउ जमानतदार न मिलिहीं कउनउ जुगुति के लागे.
बड़ी पतनि बसुदेव क होई एह समाज के आगे.

काज-बिआह क केउ न पूछी अइसन करम न कीन्हे.
कलयुग बड़ा प्रबल हइ प्रभु जी कबउ जनम न लीन्हे.

चीरहरण क जमुना तट पर तूँ रहि जाबे गेरे.
पछिउहीं संस्कृति म देहें ओन्ना मिली न हेरे.
आपन भेष बदलि ले देखा करा न तूँ मनमानी.
लदर-फदर म घास न डलिहीं कउनउ राधा रानी.

बनी ठनी गोपिनि क देखिकइ तूँ पछीआइ न लीन्हे.
कलयुग बड़ा प्रबल हइ प्रभु जी कबउ जनम न लीन्हे.

इहन कालिया बिलि मा घुसि कइ पउआ अद्धी छानी.
जमुना जी मा मिली न हेरे कहँउ बूँद भर पानी.
चरनोई के भूमि मा बटि गा अतना बड़ा गोबरधन.
मेघन के बरसे मा धारण का करबे यदुनन्दन.

पटवारिनि का काहे आपन ब्रह्म लेखनी दीन्हे.
कलयुग बड़ा प्रबल हइ प्रभु जी कबउ जनम न लीन्हे.

दादा बनिकइ कहउ जो देखा कन्श क नटई दाबे.
हत्या केर मुक़दमा लागी चउदह साल क जाबे.
महिलन के आयोग क नेता हबइ पूतना माई.
बक्क-बाइ जो ओसे करबे सीधे जेल देखाई.

गोरि-नारि वरदी धारिनि से छेड़-छाड़ न कीन्हे.
कलयुग बड़ा प्रबल हइ प्रभु जी कबउ जनम न लीन्हे.

गारी-फुद्दा देबइ करिहीं केउ न तरबा चाटी.
चक्र शुदर्शन शिशुपाल क कतनी नटई काटी.
अवैध शस्त्र क बनी मुक़दमा बड़ा पचेड़ा अँटकी.
टाडा लागी अउ तिहाड़ म लइनि जाइ कइ पटकी.

घर-दूआर जसुमति मईआ क राजसात न कीन्हे.
कलयुग बड़ा प्रबल हइ प्रभु जी कबउ जनम न लीन्हे.

ओसामा कस कतना घूमत हँ बारह नंबर टांगे.
अर्जुन क गांडीव धइजई एटम बम के आगे.
अब पंचर बनबाबइ खातिर कर्ण न परिखी देखा.
काटि-छाटि फुरसति कइदेई सगली जीवन रेखा.

दगी मिसाईल जीत-हार का कबउ न दाबा कीन्हे.
कलयुग बड़ा प्रबल हइ प्रभु जी कबउ जनम न लीन्हे.

बमवर्षक विमान लइ छाती इहन पितामह चडिहीं.
दुर्योधन शकुनी पांडव क राति-विराति कइ तडिहीं.
हाइड्रोजन बम से इ धरती बीचइ-बीच म फाटी.
उमर बनी अश्वत्थामा औ सीधे नटई काटी.

कालयवन बनि बुश बइठा हइ आपन प्राण न दीन्हे.
कलयुग बड़ा प्रबल हइ प्रभु जी कबउ जनम न लीन्हे.

एँह से पहिले एंह सृष्टि क प्रभु विनाश कइ देते.
ओके बाद अकेले छुट्टा इहन जनम तूँ लेते.
माखन मिशिरी दूध मलाई फटे हाल सब खाते.
रास रचउते गोपिनि के संग दबा पान बिदूराते.

जब लीन्हे अवतार जगत म "गगनउ" क तूँ चीन्हे.
कलयुग बड़ा प्रबल हइ प्रभु जी कबउ जनम न लीन्हे.

जय सिंह"गगन"

लूड़ा लागइ एह सरपन्ची.




बघेली कविता.
लूड़ा लागइ एह सरपन्ची.

नेम-प्रेम त आधइ रहि ग मूड कपार न फुटइ.
लूड़ा लागइ एह सरपन्ची खानदान न टूटइ.

साँझि-सकारे मूडे माही धरे हाथ हम रोई.
चारि साल से कबउ पेट भर सोबइ मिला न होई.
सकल गाँउ भिंसारे एँही आबइ करइ मुखारी.
सोटइ चाइ अउ चाबइ हर दिन आधा किलो सुपारी.

कबउ न होइ के चीनी गुर क करजा ससुरा छूटइ.
लूड़ा लागइ एह सरपन्ची खानदान न टूटइ.

कहँउ घिये क मेटिया ढरकी फूटा कहँउ कठउता.
सगली राति बइठी कइ घर म होइ रोज समझउता.
रोटी मूदे चूल्हा माही सोइ गयीं मेहरारू.
सगला गांउ जुहाइ ओसरिआ छानि रहा हइ दारू.

एहीं भामा-भोरे कउनउ घर-दुआर न लूटइ.
लूड़ा लागइ एह सरपन्ची खानदान न टूटइ.

पापा के बगली सोबइ क लरिका हबइ निहारे.
बाप क पिंडा पारत पापा बइठे हमां दुआरे.
रोबइ बपुरा बिन पापा के आबइ न अउँघाई.
जरतइ जरत लुआठी बपुरा पाबइ रोज बिदाई.

मारे डेरि के भितरेन सुसुकइ अउ खटिया म मूतइ.
आगी लागइ एह सरपन्ची खानदान न टूटइ.

हमहूँ एंह सरपन्ची माही खूबइ नाउ कमानेन.
रहा खरीदब दूरि बाप क भुइयाँ बेचइ जानेन.
दउडि-धूपि कइ कहँउ से कबहूँ आधा तीहा लाएन.
खाइ-पदाइ एइ सब लीन्हीनि बदनामी भर पायेन.

सगला हाथ लुआठी होइ ग होम-गरास क छूतइ.
लूड़ा लागइ एह सरपन्ची खानदान न टूटइ.

पाँच साल म लगी न हाथे एकउ हियाँ अधेला.
एंह जन-सेवा के चक्कर म मगिहीं भीखि गदेला.
जनता लेई नाउ जबइ तक पिअइ-खाइ क पाई.
काटी अँगुरी मूतइ कह्बे गली चलत गरिआई.

"गगन" गाँउ क कुकुरउ लगिहीं ओहँ दिन सब यमदूतइ.
लूड़ा लागइ एह सरपन्ची खानदान न टूटइ.

जय सिंह"गगन"

मंगलवार, 19 मार्च 2013

परधानी.




बघेली कविता
परधानी.
हारि गएँ जिमीदार,राजा औ रानी.
रमुआ कई मेहरारू जीति गइ प्रधानी.

खूब बँटा दारू औ कटा रोज भईसा.
घरे-घरे बरसा तइ झमाझम पईसा.
चला नही दाउँ-पेंच आँचा अउ पांचा.
मतदाता मारि दिहिनि मुहे माँ तमाचा.

फँसा जउन बपुरा त उहई मज़ा जानी.
रमुआ कई मेहरारू जीति गइ प्रधानी.

गाउँ के एहँ चुनाउ माँ भइ बिपत्ति भारी.
टोरि दिहिनि खानदान नेउता अउ सुपारी.
जे जहाँ मानिनि तइ जउन बोट आपन.
ओनकर त होइग चुनाउ म समापन.

रामदीन छोडि दीहिनि गाउँ क जजमानी.
रमुआ कई मेहरारू जीति गइ प्रधानी.

ई चुनाउ एहँ समय सबसे बड़ा मुद्दा.
घरे-घरे मचा हबइ गारी अउ फुद्दा.
आपन सरकारि आई अपने दुआरे.
अपसइ म लड़ा रहाँ पनही उतारे.

मरत हमाँ महतारी-बाप बिना पानी.
रमुआ कई मेहरारू जीति गइ प्रधानी.

पहिले जब मिलाँ कबउ कइतिआइ भागाँ.
आजु गिरा गोड़े अउ परनामी दागाँ.
पनिअउ अछूत कहाँ कबउ होइ नेउता.
ओनहिनि क पूजि रहें मंदिर कस देउता.

कलुई चमारिनि भइ दुर्गा महरानी.
रमुआ कई मेहरारू जीति गइ प्रधानी.

ओह दारी जब तोहँका जिताइसि तइ जनता.
पाँच साल रोइ कइ बिताईसि तइ जनता.
पढ़े-लिखे कतना हुशिआर रहे काकू.
नहीं करे कुछू तूँ बेकार रहे काकू.

खाए हइ चीनी अउ चाउर मनमानी.
रमुआ कई मेहरारू जीति गइ प्रधानी.

एह डिगरी धारिनि से अउठइ हइ अच्छा.
थोर बहुत जउन करी काम करी सच्चा.
कहउ करइ नागा त सब जन मिलि टोंका.
जउन करइ नीक करइ ग़लत करइ रोका.

"गगन" करी जनता अब तोहरउ निगरानी.
रमुआ कई मेहरारू जीति गइ प्रधानी.

जय सिंह"गगन"

गुरुवार, 7 मार्च 2013

इन ग़ज़लों में प्यार बहुत है.



इन ग़ज़लों में प्यार बहुत है.

दर्द बहुत हैं दिल में मेरे,
शब्दों में अंगार बहुत हैं.
आख़िर उनको क्यूँ लगता है,
इन ग़ज़लों में प्यार बहुत है.

तन्हाई से बातें करती,
मेरी रात ढली है अक्सर.
जब भी कोई सपना टूटा,
तब ही कलम चली है अक्सर.

शाम ढले बिस्तर पर आकर,
धुंधली सी यादें सोती हैं.
दिल के जज्बातों से बोझिल,
यह आँखें अक्सर रोती हैं.

लब पर खामोशी को ओढ़े,
सोए हुए गुबार बहुत हैं.
आख़िर उनको क्यूँ लगता है,
इन ग़ज़लों में प्यार बहुत है.

मैं साहिल के साथ न जाने,
कट कर कितनी बार बहा हूँ.
झूठे अफ़सानो से आहत,
जाने कितने दर्द सहा हूँ.

आँखों से छलके अश्कों को,
घूँट घूँट कर पीना सीखा.
अपने ही साए से लिपटा,
अँधियारे में जीना चाहा.


पतझड़ के दामन से लिपटी,
रोती हुई बहार बहुत हैं.
आख़िर उनको क्यूँ लगता है,
इन ग़ज़लों में प्यार बहुत है.

हर रिश्ते को आहत करती,
झूठी एक कहानी मेरी,
मैं ही हूँ यह खोज रही है,
मुझको आज निशानी मेरी.

यह ऐसी दहलीज जहाँ मैं,
बेबश और लाचार खड़ा हूँ.
कितने ही टुकड़ों में टूटा,
बिखरा चारों ओर पड़ा हूँ.

मैं तो मौन समंदर जैसा,
जिसमें पलते ज्वार बहुत हैं.
आख़िर उनको क्यूँ लगता है,
इन ग़ज़लों में प्यार बहुत है.

जय सिंह"गगन"