मंगलवार, 26 फ़रवरी 2013

एहसास.



चाहत हूँ किसी और की जाना है कहीं और,
एहसास तेरा घर से निकालने नही देता.

सोमवार, 25 फ़रवरी 2013

सो लेने दो.



रंग प्यार का गहरा है पर,
धुलता है धो लेने दो.
वर्षों से सावन सूना है,
आखों को रो लेने दो.
ठंडी,गर्मी,जेठ,दुपहरी,
कितनी रातें जागा हूँ,
घनी गेसुओं की छाया में,
कुछ पल तो सो लेने दो.

फिर जाने कब केश खुलें ये,
कब बाहों का हार मिले,
कब जाने प्यासे अधरों को,
इन अधरों का प्यार मिले.

जाने कब ऐसी सेज सजे,
कब महके चंदन रातों को,
जाने कब कहाँ पनाह मिले,
दिल के झुलसे जज्बातों को.

कब कहाँ खुले यह घूघटपट,
कब नयन मिलें यूँ शरमाएँ
कोई हाथ फिरे माथे पर,
कोई उलझी लत सुलझाए.

कब फिर नयनो से नयन मिलें,
कब हटे शर्म का यह बंधन.
होठों से जलते होठों का,
फिर जाने कब हो आलिंगन.

बस क्षणिक किसी की यादों में,
मैं खोया हूँ,खो लेने दो,
घनी गेसुओं की छाया में,
कुछ पल तो सो लेने दो.

"गगन"

तुलना.



तेरे सुर्ख लबों से तुलना, यह मुझको मंजूर नहीं,
मैने तोड़ा फेक दिया कल, उन मासूम गुलाबों को.
"गगन"

पागलपन.



पागलपन था,डूब गये, उन झील सी गहरी आँखों में,
कहाँ तैरना आता था,मासूम हमारे ख्वाबों को.
"गगन"

मंगलवार, 19 फ़रवरी 2013

चोट.



चोट
 चोट दिल पर है,

जख्म गहरे हैं.
लगे यूँ ,
शदियों से,
उदासियों के पहरे हैं.
यही विरह है,
यही प्रणय है,
सारा जग सौदाई है,
रह रह कर,
जो हूक उठे,
बस उसका नाम,
जुदाई है,
जिससे भी,
यह खता हुई,
यदि सजा मिली,
तो पाने दो.
रहने दो,
काफिर आँखों को,
बहती हैं,
बह जाने दो.
जय सिंह"गगन"

बुधवार, 13 फ़रवरी 2013

मोरे दादू क.



बघेली कविता

बोर्ड क आबा इम्तहान मोरे दादू क.
अँटका हइ चूंदई म प्रान मोरे दादू क.

सुरती सुपारी ससू जान बना ओनकर.
ज़ेबा देखा पॅयन क दुकान बना ओनकर.
कतनउ जो कहइ त सुनात नहीं एनके.
पान देखा मुहें म ओंबात नहीं एनके.

होठ ओठलाली कस ललान मोरे दादू क.
अँटका हइ चूंदई म प्रान मोरे दादू क.

चर्र-चर्र राति भर फारि रहें चुटका.
सगळे खलीशा माँहि डारि रहें चुटका.
घोड़ा हाँथी गदहा क नाम लिखि डारिनि.
पेटे अउ पिठाहें म तमाम लिखि डारिनि.

बिना पढ़े होइग बिहान मोरे दादू क.
अँटका हइ चूंदई म प्रान मोरे दादू क.

अपनेन कस टोली म डहरि रहें देखा.
जीगर हँ झंडा अस फहरि रहें देखा.
छिनइ भर देखा अउ हेराइ जाँइ पट्टई.
पढ़इ लिखइ कहइ त पराइ जाइ पट्टई.

कक्षा माही पउबे तूँ लूकान मोरे दादू क.
अँटका हइ चूंदई म प्रान मोरे दादू क.

आसउँ त पढ़ाई म कमाल कइ आएँ.
पर्चा क सगला सवाल कइ आएँ.
उल्टा सीधा सगला घटाइ जोडि आएँ.
परचा म चुटका घलाइ छोडि आएँ.

पास नहीं फेल भर सुनान मोरे दादू क.
अँटका हइ चूंदई म प्रान मोरे दादू क.

ओइसे क सगला बज़ार छुछुअइहीं.
पढ़इ जो कहै त बेराम होइ जइहीं.
छोटकउना सोइ ग लिबाला क ताके.
महतारी बइठी हइ लाला क ताके.

राति-राति पउबे तूँ हेरान मोरे दादू क.
अँटका हइ चूंदई म प्रान मोरे दादू क.

एनके पढाई माही घरबउ बेचाइ ग.
आसउँ के परीक्षा माही फरमउ भराइ ग.
छोडि कइ पढ़ाई क उदार भएँ दादू.
नकल क आसउँ ठेकेदार भएँ दादू.

"गगन" हमां तबउ पछिआन मोरे दादू क.
अँटका हइ चूंदई म प्रान मोरे दादू क.
जय सिंह"गगन"

गुरुवार, 7 फ़रवरी 2013

नइकी दुलहिया.



बघेली कविता.

डेहरी म अँसुअन के धार छोडि आई हइ..
नइकी  दुलहिया भतार छोडि आई हइ.
काजे म जउन कुछु मइके म पाइसि तइ
हांथे कइ मेहदी,स्रिंगार छोडि आई हइ.
मेहरारू छोडि ससू, कार जउन मागइ त,
अइसन उ जाहिल, गमार छोडि आई हइ.
राति दिना फफकति हइ भीति के आड़े म,
जइसइ के सगला भड़ार छोडि आई हइ.
सासु बहुत रोबति है पढ़ी लिखी पुतउ क,
छोलइ क ओकर बगार छोडि आई हइ.
जउने म बपुरी क चाहिनि तइ जारइ क,
अँगने म कॅंडा उजारि छोडि आई हइ.
इहउ हबइ मुद्दा कुछु एहूँ पर सोचा त.
सोचइ क एक ठे विचार छोडि आई हइ.
जय सिंह"गगन"

सोमवार, 4 फ़रवरी 2013

हुकूमत.



झूठ, फरेबी, मक्कारी, सब मिले जहाँ बहुतायत मे,
तुम चाहो तो एक लफ़्ज में,इनका नाम हुकूमत लिख दो.

जय सिंह"गगन"