गुरुवार, 10 जनवरी 2013

समझौता.




समझौता

जोड़ा गया है ऐसा कुछ संविधान में.
ईश्वर रहेंगे कल से रब के मकान में.

उपहार में वो ले गये मूँछे उखाड़ कर,
अब दाढियाँ बची हैं मेरे खानदान में.

वाराणसी के पान का तोहफा उन्हें दिया,
वो थूंक गये उसको भी पीक दान में.

बेगम को चूड़ीयाँ मूसर्रफ को शेरवानी,
मनमोहनी अदा थी साजो-सामान में.

नानवेज ख़ास था परवेज़ के लिए,
मशले सुलझ रहे थे इसी खानपान में.

इस शांति पहल की कुछ रफ़्तार यूँ बढ़ी.
जैसे के कोई छोड़ दे साइकल ढलान में.

वो चले गये फाइलों में क़ैद कर अमन,
चूहे कुतर रहे हैं जिसे वर्तमान में.

यूँ कह रहे हों हमसे औकात देख लो,
उल्टे लटक रहे हो तुम वायुयान में.

जाने के बाद उनके हम खोजते रहे,
दोस्ती पड़ी थी वहीं मरतवान में.

खामोश रहे फिर से हम कश्मीर पर,
ताला लगा था शायद सब की ज़ुबान में .

हम समझदार हैं कभी काटते नहीं,
बस भोकते हैं केवल हम आशियान में.

फिर कुछ दिनो यह वार्ता का दौर चलेगा,
बकरे हलाल होंगे इस दरमियान में.

खाओ-पिओ मनाओ बस मौज तुम "गगन",
रक्खा ही क्या है फालतू इस दास्तान में.


जय सिंह "गगन"

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