सोमवार, 3 दिसंबर 2012

लौट आओ.



ग़ज़ल

ऐ जाने जिगर जाने बहार लौट आओ
यूँ ढूढता है तुमको मेरा प्यार लौट आओ.

हर सौक फ़ना हो गए श्रृंगार छिन गया,
बाँहों का वही डालने गलहार लौट आओ.

तुम बेवफा थे दिल ये मेरा मान ले कैसे,
मेरे लिए बने हो मेरे यार लौट आओ.

एक नाम से तुम्हारे सब लोग आ गए,
बस हो रहा तुम्हारा इंतजार लौट आओ.

ये जान भी है हाजिर क्या इम्तहान दूं,
हर साँस मेरी तुम पर निसार लौट आओ.

जो ढूढती है अपने उस कदरदान को.
उन पायलों की सुनने झंकार लौट आओ.

कोई नहीं तुम्हारी बस याद के सिवा
सुना है मेरा सारा संसार लौट आओ.

ये रूठना मनाना अब बहुत हो चुका.
मिलने को कोई तुमसे बेकरार लौट आओ.

अब मेल है ये आखिरी धरती से गगन का,
बस एक और सिर्फ एक बार लौट आओ,

जय सिंह "गगन"