बुधवार, 28 नवंबर 2012

विकास देखिये.



वर्षों से चिपकी आँतों में, पलता यह उपवास देखिये.
बच्चों-बूढों की आँखों से, बहता हुआ विकास देखिये.

आज नहीं तो गम कैसा, कल सभी पेट भर खायेंगे,
भूखे चेहरों को समझाता, चेहरा एक उदास देखिये.

सरकारी चौखट पर जब से, सूरज पहरेदार हुआ,
काला स्याह अन्धेरा पसरा, बस्ती में बिंदास देखिये.

वादे टूटे , चाहत झुलसी , हर सपना काफूर हुआ,
थोड़ी सी उम्मीदों का यूँ, कैसे हुआ विनाश देखिये.

सत्ता के गलियारे में है, महगाई की मार कहाँ,
सारे शौक नबाबी करते, हम सब का उपहास देखिये.

बदबू दार नालियाँ , सड़कें गड्ढों में तब्दील हुयी,
गावों के बदले जाने का, ऐसा हुआ प्रयास देखिये.

संसद की मर्यादा लूटी “गगन” कई घोटालों ने,
शर्मसार है जनता सारी, हिन्दुस्तान निराश देखिये.

जय सिंह "गगन"

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