शनिवार, 22 सितंबर 2012

उलझन.



 ग़ज़ल

मुहब्बत है, या यह कोई गले की फाँस है प्यारे.
गली कूचों मे भी होता मेरा उपहास है प्यारे.
हसीं थे ख्वाब अब लटके दिखे फाँसी के फंदे हैं,
मेरी आँखों को शायद हो गया बनवास है प्यारे.
कभी पायल वो छनकाए,कभी छू कर गुजर जाए,
अंधेरों में भी यूँ , उसका किया अहसास है प्यारे.
अजब सा हाल है यारों यहाँ चेहरे की रंगत का,
कि जन्मों से किया मैने कोई उपवास है प्यारे.
नहीं मालूम था यह रोग कि,इतना बुरा होगा,
हुई जो भूल अब उसका हुआ आभास है प्यारे.

"गगन"

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