गगन
बुधवार, 19 सितंबर 2012
इंतज़ार.
कोई कह दे की अब उनको निरखना छोड़ दें आँखें.
कि उनकी याद में बिन मौसम बरसना छोड़ दें आँखें.
जो अपना था कभी अब हो चुका शायद पराया है,
कि अब दीदार को उनके तरसना छोड़ दें आँखें.
"गगन"
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें
नई पोस्ट
पुरानी पोस्ट
मुख्यपृष्ठ
सदस्यता लें
टिप्पणियाँ भेजें (Atom)
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें