बुधवार, 26 सितंबर 2012

नदिया और किनारा.




हम बर्षों के बाद मिले यूँ, जैसे सूखे फूल खिले यूँ ,
ठण्ड पवन पुरवाई आयी, गुलशन में रानाई आयी,
बागों के पत्ते बजते यूँ, खनक रहे हों कंगन जैसे,
लहराती बेलों का होता, पौधों से आलिंगन जैसे,
मैं नदिया मेरे किनारे तुम,खुद से मुझको टकराने दो,
हौले से खोलो घूंघट पट,बाहों में मुझे समाने दो.

मैं तो एक उफनती नदिया, जिसका एक किनारा तुम हो,
लहरों की खामोशी का बस,केवल एक सहारा तुम हो,
मुझसे प्यास बुझाने वाला,शायद अंतिम जाम वही है,
वह तो है इक प्यासा सागर,मेरा सिर्फ मुकाम वही है,
माना यह अनचाहा बंधन,लेकिन मिलन जरूरी भी है,
नदियों का सागर से संगम,जन्मों की मजबूरी भी है.

यह जो है रीति सनातन से,तुम मुझको इसे निभाने दो,
तट-बंध बनो बस छुओ मुझे,मैं बहती हूँ बह जाने दो.

अश्कों को रोको बहें नहीं,इन आँखों को समझाओ तुम,
यह दर्द-ए-जिगर तुम्हारा है,सब के आगे मत गाओ तुम,
मंजिल उल्फत की यही प्रिये,आगे राहों में कांटे है,
यह कोलाहल है क्षणिक सुनो,फिर तो बिखरे सन्नाटे हैं,
इन वर्षों के इंतज़ार में, उल्फत है रुशावाई भी है,
दो पल की खुशियों के आगे, लम्बी एक जुदाई भी है,

लहरों को चूमो प्यार करो,बाहों का दे दो हार इन्हें,
मैं खो जाऊं बस यादों में,तुम दे दो सारा प्यार इन्हें,
मगरूर समंदर आतुर है,शदियों से हमको पाने को,
मासूम मचलती धारा को,क्षण भर में ही पी जाने को.
अब भूलो मेरी हकीकत को,बस यादों में एहसास करो,
है साथ मगर जो दूरी है,कुछ उस पर तो विश्वास करो.

शायद मेरी है नियति यही,तुम मुझको ठोकर खाने दो,
टकराने दो चट्टानों से,मैं बंटती हूँ बंट जाने दो,

 जय सिंहगगन

मंगलवार, 25 सितंबर 2012

लौट आओ(रिकार्डिंग).

याद तुम्हारी आयी शायद(रिकार्डिंग).

मत कहो मुझे दुःख की गगरी (रिकार्डिंग).

एक ख़त महबूब के नाम (रिकार्डिंग).

चल चन्दा उस देश (रिकार्डिंग).

सावन (रिकार्डिंग).

राह-ए-जन्नत.



है अगर तमन्ना जन्नत की मैं तुमको मार्ग बताता हूँ.

तुम मरने को तैयार रहो मैं जन्नत लेकर आता हूँ.

"गगन"

सोमवार, 24 सितंबर 2012

शायद चाँद चुराने की.


ग़ज़ल
आसमान को पड़ी जरूरत, तारों को समझाने की.
सबने मिलकर कोशिश की थी, शायद चाँद चुराने की.
भरी दोपहर स्याह हो गयी, सूरज की रुशवाई से,
दिन को आखिर पड़ी जरूरत, शमां तुझे जलाने की.
यह कैसी वीरानी पसरी , मधुवन में, औराई में ,
किसने की है जुर्रत आखिर, कोयल तुझे रुलाने की.
गुलशन को है राज पता यह, फूलों की खामोशी का,
उसकी ही शाजिश थी शायद, भौरों को बहकाने की,
फिर से यह इल्जाम लगा है, बस्ती तेरी गरीबी पर,
उसने फिर से कोशिश की है, ख़्वाबों को दफनाने की.
रातों को यादें मिलाती है, अक्सर उनकी यादों से,
तन्हां घर में खुली छूट है, सब के आने-जाने की.

गगन

जरूरत.



आसमान को पड़ी जरूरत तारों को समझाने की.
.
सबने मिलकर कोशिश की है शायद चाँद चुराने की.


"गगन"

शनिवार, 22 सितंबर 2012

उलझन.



 ग़ज़ल

मुहब्बत है, या यह कोई गले की फाँस है प्यारे.
गली कूचों मे भी होता मेरा उपहास है प्यारे.
हसीं थे ख्वाब अब लटके दिखे फाँसी के फंदे हैं,
मेरी आँखों को शायद हो गया बनवास है प्यारे.
कभी पायल वो छनकाए,कभी छू कर गुजर जाए,
अंधेरों में भी यूँ , उसका किया अहसास है प्यारे.
अजब सा हाल है यारों यहाँ चेहरे की रंगत का,
कि जन्मों से किया मैने कोई उपवास है प्यारे.
नहीं मालूम था यह रोग कि,इतना बुरा होगा,
हुई जो भूल अब उसका हुआ आभास है प्यारे.

"गगन"

शुक्रवार, 21 सितंबर 2012

आरजू.



हमसे बस दो बातें शायद उनकी भी मजबूरी है.

कहते हैं नफरत के खातिर थोडा प्यार जरूरी है.

उनकी यादें दिल में लेकर मैं जागा हूँ रातों को,

पर उनका सपना बनने की चाहत मगर अधूरी है.

"गगन"

गुरुवार, 20 सितंबर 2012

हौसला.



किश्तिया समंदर में तूफ़ानों से संभाली है.
सूरज से अपने हिस्से की धूप भी निकाली है.
हौसला हो अगर हालात से लड़ने का तो,
लोगों ने यहाँ मौत की तारीख बदल डाली है.

"गगन"

अनुनय-विनय



अनुनय-विनय

हे गणपति दुःख-हर्ता सुन लो,सबके मंगल-कर्ता सुन लो,

खुशियाँ हैं,लाचारी भी हैं,किंचित विनय हमारी भी है,

करो प्रफुल्लित जन जीवन को,महगाई से टूटे मन को,

भूख हरो बेगारी हर लो, सारी भ्रष्टाचारी हर लो,

अत्याचार मिटाने आओ,सच्चा मार्ग दिखाने आओ,

देश बने फिर न्यारा प्रभु जी,फैले भाईचारा प्रभु जी,

एक देश हो नेक रीति हो,पाक साफ़ फिर राजनीति हो,

सबको सत्य वचन से भर दो,हर ग़रीब को धन से भर दो,

प्रथम-पूज्य हे गणपति-बप्पा बिनती यही हमारी प्रभु जी.

उम्मीदों का दामन थामें आया शरण तुम्हारी प्रभु जी.

जय हो वक्र-तुंड की, जय हो महाकाय विघ्नेश की.

जय हो प्रथम पूज्य प्रभुवर की,गौरी-पुत्र गणेश की.

शत-शत चरण वंदन प्रभु जी,

गगन

बुधवार, 19 सितंबर 2012

कशिश.




तुम दिल से जुदा यूँ जब से हुए, वह तुम्हे पुकारा करता है.

हर मिलने जुलने वालों से मिलते ही किनारा करता है.

गैरों की बाहें मिली मगर,वो उसे सहारा दे न सकी,

वो हर कमसिन की आँखों में बस तुम्हें निहारा करता है.

"गगन"

इंतज़ार.



कोई कह दे की अब उनको निरखना छोड़ दें आँखें.

कि उनकी याद में बिन मौसम बरसना छोड़ दें आँखें.

जो अपना था कभी अब हो चुका शायद पराया है,

कि अब दीदार को उनके तरसना छोड़ दें आँखें.

"गगन"

बुधवार, 5 सितंबर 2012

ग़ज़ल.





वर्षों से एक बूँद को प्यासी जमीन है.
लोंगो को इन घटाओं पर फिर भी यकीन है.

यह दौर मुहब्बत का ज़रा तेज है मगर,
ठहरा हुआ ही अक्सर लगता हसीन है.

दरिया को सताता है समंदर का खौफ क्यूँ,
है मामला गहरा मगर एकदम जहीन है.

उसकी मदद को कल से कई हाँथ बढ़े हैं.
कहते हैं उस गरीब की बेटी हसीन है.

उधडे जो घर के रिश्ते कैसे सिले कोई,
फासला दिखता मगर मसला महीन है.

दर्द-ए-जिगर भी मेरे कुछ यूँ बयां हुए,
उनको लगा कि ग़ज़ल ये ताजा तरीन है.

जय सिंह"गगन"

मुन्ना अब स्कूल चलो.



मुन्ना अब स्कूल चलो.

विश्व शांति और दंगा पढ़ने,
क ख ग घ अंगा पढ़ने.
झाडो बस्ता धूल चलो.
मुन्ना अब स्कूल चलो.

            मुन्ना अब स्कूल चलो.

नए साल की नयी पढ़ाई,
पाठ तुम्हारे बड़े मिलेंगें.
हरदम मास्टर जी कक्षा में,
डंडा लेकर खड़े मिलेंगें.

अब रामायण मियां पढ़ेगा,
च छ जा झ इया पढ़ेगा.
कर लो याद सुधार सिंह को,
छोडो बात फिजूल चलो.

            मुन्ना अब स्कूल चलो.

बारहखडी ककहरा लेकर,
गिनती और पहाडा पढ़ने.
किसने किसका कुल्लू खींचा,
किसका टूटा नाडा पढ़ने.

पन्ना खोलो खडा मिलेगा,
ट ठ ड ढ ण मिलेगा.
खेल खेल में उल्टी गिनती,
तुम न जाना भूल चलो.

            मुन्ना अब स्कूल चलो.

कल जो सबक मिला था बच्चू,
उसको आज दिखाना होगा.
कलम खो गयी स्लेट नहीं है,
फिर कुछ नया बहाना होगा.

त थ द ध न कह देगा,
प फ ब भ म कह देगा.
इस झंझट से मुक्ति पाने,
सबको पढ़ो समूल चलो.

            मुन्ना अब स्कूल चलो.

अच्छी करो पढाई प्यारे,
सबका तुमको प्यार मिलेगा.
हर मुश्किल में साथ तुम्हारे,
य र ल व यार मिलेगा.

हर प्रश्नों के हल को लेकर,
श ष स ह कल को लेकर,
तुम्हें करेगा कूल चलो.

            मुन्ना अब स्कूल चलो.

कभी परीक्षा फेल न होना,
घर में भी फटकार पड़ेगी.
नक़ल न करना बच्चू समझे,
मास्टर जी की मार पड़ेगी.

क्ष त्र ज्ञ कान न खींचे,
कहीं तुम्हारी जान न खींचे,
भारत की बगिया महकाने,
चाचा जी के फूल चलो.

            मुन्ना अब स्कूल चलो.

                  गगन

मंगलवार, 4 सितंबर 2012

सलाह.



है धार तेज नदिया की जी, तुम बीच भंवर में मत जाना.
वो शख्स ज़रा दीवाना है, तुम उसके दर पर मत जाना.

तुम क्यूँ चले गये.



ग़ज़ल

तुम क्यूँ चले गये

रिश्तों की डोर तोड़कर तुम क्यूँ चले गये.

मजधार में यूँ छोड़ कर तुम क्यूँ चले गये.


मैं पूंछता तुमसे मेरा था गुनाह क्या.

फिर इस कदर मुंह मोड़कर तुम क्यूँ चले गये.


चाहूँ तो कभी चाह कर भी भूल ना सकूँ.

यादों से अपनी जोड़कर तुम क्यूँ चले गये.


आँखों से आंसुओं का सैलाब बह रहा.

पलकों को मेरी खोल कर तुम क्यूँ चले गये.


हकीकत न सही ख्वाब में ही बात तो होती.

आये और टटोलकर तुम क्यूँ चले गये.


नीरस सी जिंदगी है कोई रस नहीं रहा.
]
"गगन"को निचोड़ कर तुम क्यूँ चले गये.

जय सिंह "गगन"

सोमवार, 3 सितंबर 2012

सवाल.


प्यार दर्द है, प्यार बेबसी, हर दिल का जंजाल यही है.
फिर क्यूँ लगता इतना प्यारा,सबसे बड़ा सवाल यही है.

रविवार, 2 सितंबर 2012

बचपन हमें बचाना होगा.



कविता
              बचपन हमें बचाना होगा.................


रूखा बचपन सूखा बचपन,देखो कितना भूंखा बचपन,
गाँव देश जन-जन के मन में,नई क्रांति लाना होगा.
              बचपन हमें बचाना होगा.

कल-कारखाने जाते बच्चे,ढेरों बोझ उठाते बच्चे,
अपनी इस मेंहनत के बदले,एक अठन्नी पाते बच्चे.
सोचो तो ये दिल रोता है,आठ आनें में क्या होता है.
यह भूंखा बचपन भी आख़िर,जानें कितने गम ढोता है.

हर गम हमको पीना इनका,जहाँ गिरे पसीना इनका,
               समझो खून बहाना होगा.
               बचपन हमें बचाना होगा

इनमें जो नादान छिपा है,समझो वो भगवान छिपा है.
इनके अल्लड़पन के अंदर,एक अनोखा ज्ञान छिपा है.
इनका बचपन अगर खिला है,तो समझो सर्वस्व मिला है.
कर्णधार हैं ये भारत के प्रगती की आधारशिला है.

सारा खर्चा हमें वहन कर एक फटी पतलून पहन कर,
                सुंदर फूल खिलाना होगा.
                बचपन हमें बचाना होगा

घर के चंदा-मामा हैं ये,बुश,बराक ओबामा हैं ये.
ये नानक हैं,पैगंबर हैं,कल के कृष्ण-सुदामा हैं ये.
स्कूलों में जाएँ कैसे,पुस्तक को अपनाएँ कैसे,
पग-पग पर होते शोषण से,सोचो मुक्ति पाएँ कैसे.

चेहरे के भावों को पढ़कर,हमको इस मिट्टी को गढ़कर,
                   सुंदर मूर्ति बनाना होगा.
                   बचपन हमें बचाना होगा.
                                         जय सिंह "गगन"