मंगलवार, 28 अगस्त 2012

ग़ज़ल.



ग़ज़ल


कल से मेरे कदम डगमगाने लगे.

वो मुझे देख कर मुस्कुराने लगे. 


खुशबू ऐसे फिजाओं में बिखरी लगा.


गेसुओं को वो अपनी सुखाने लगे.

बस अचानक ही नज़रों से नज़रे मिली.

हम समंदर में गोते लगाने लगे.

उनकी छत की तरफ मेरी खिड़की खुली.

चिलमनों में वो खुद को छुपाने लगे.

दर्द सारे "गगन" के ग़ज़ल बन गये.

जबसे महफ़िल वो मेरी सजाने लगे.



जय सिंह"गगन"

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