सोमवार, 9 जुलाई 2012

दर्द-ए-दिल.


दर्द-ए-दिल यूँ देकर मत लो इम्तहान इन आँखों का,
अश्कों का सैलाब बहा तो सागर कम पड़ जाएगा.

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें