रविवार, 6 मई 2012

जानेमन.



ये कैसी बेवजह की हो गयी तकरार जानेमन.
तुम्हारे बिन मेरा जीना हुआ दुश्वार जानेमन.
जला डालें न ये लम्हें कहीं मुझको जुदाई के,
सुलगता है कहीं सीने में इक अंगार जानेमन.
अगर चाहो जवां कर दो या इसको फना कर दो,
मेरी चाहत तुम्हें देती है ये अधिकार जानेमन.
तुम्हारे बिन नजारों को भला देखें तो क्या देखें,
खुली जब आँख अश्कों की बही है धार जानेमन.
धडकता है ये दिल अब भी तुम्हारा नाम ले-लेकर,
कहीं साँसों में भी बसता तुम्हारा प्यार जानेमन.
चले आओ चरागों से मेरा रोशन जहाँ कर दो,
मेरी यह अंजुमन सजने को है तैयार जानेमन.

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