गगन
बुधवार, 1 फ़रवरी 2012
चाहत.
यहाँ अँधेरा बड़ा घना है,कब तक सर टकरायेंगे.
शब्द हमारे तनहां हैं यूँ,आखिर कब तक गायेंगे.
इस धरती से उस अम्बर तक,छाई बस वीरानी है,
तुम होंठों से छूलो इक-इक,हर्फ़ गज़ल बन जायेंगें.
जय सिंह"गगन"
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