गुरुवार, 26 जनवरी 2012

बुढ़ापा

                      ग़ज़ल


कितना  दुख  से भरा बुढ़ापा है.

अपने  घर  में  डरा बुढ़ापा है.

बेटे  बहुओं  की  यातनाओं से,

मौत  से  पहले  मरा बुढ़ापा है.

पोते  पोतियों   को  बहलाता,

गम में भी मसखरा बुढ़ापा  है.

सीँचकर  आँसुओं से यादों को,

रखता  खुद को हरा बुढ़ापा है.

खुद कोआईने में झाँककर देखो,

सबके  सर  पर धरा बुढ़ापा है.

खोजते  हो  अगर  किसे पूजूँ,

"गगन"  का मसवरा बुढ़ापा है.

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