शनिवार, 28 जनवरी 2012

अन्ना आन्दोलन पर विशेष...........






*कविता *


सिसकती रात की तन्हाई में,

मेरा मन, मेरी रूह ,

मुझे उस ओर

खींच ले जाती है.

जहाँ किसी की आह ,

हमारे आन्दोलन पर,

उंगली उठाती है.



फुटपाथ पर निर्वस्त्र लेटा बच्चा,

जिसका तन कहीं,मन कहीं है.

जिसे अपने परिवार का ,

पता नहीं है.

दो वक्त की रोटी के लिए,

मुहताज हों रहा है.

कुत्ते बिल्ली की तरह ,

मार खाता रो रहा है.



आदरणीय अन्ना जी 
,
हमें उनके आंसुओं का हिसाब देना है.

उनके हांथों में,

शस्त्र नहीं ,किताब देना है.




यहाँ वक्त के पहले ही,

कई कलियाँ फूल बनकर ,

मुरझा जाती हैं.

खो जाती हैं.

जिस्म के बाज़ार में बिक कर

शहीद हों जाती हैं.

देखो तो महानगरों में,

ऐसे वाकये आम हैं ,

पर इस दलदल से इनकी मुक्ति का,

हमारा हर प्रयास ,

नाकाम है.




आदरणीय अन्ना जी ,

आज नहीं तो कल हमें फिर आना है.

उस माँ की पूजा कर,

उसकी कोख से,

जन्म पाना है.




हर गली हर चौराहे पर,

एक बेरोजगार की लाश

दबी है ,सड़ी है.

कौन देखे,

किसी को क्या पड़ी है.

मंहगाई की मार ,

बेरोजगारी का भार,

कमर को तोड़ देता है.

रोटी, कपड़ा, और मकान की

जरुरत का सपना,

इन प्रतिभाओं को,

विनाश की ओर मोड़ देता है.




आदरणीय अन्ना जी ,

हमें इनमें,

देश प्रेम की भक्ति को,

जगाना है.

इनकी सूख चुकी रंगों में,

संघर्ष की शक्ति लाना है.




आदरणीय अन्ना जी ,

बस एक छोटी सी आस के सहारे,

इस सार्थक ,

प्रयास के सहारे,

हमें अपने देश पर लगे,

कलंक को धोना है.

इन हंसते -खेलते दिलों में,

एक सच्चे देश-भक्त की तरह,

अमर होना है.


जय सिंह "गगन"

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