शुक्रवार, 27 जनवरी 2012

* भविष्य*



* कविता *


कानों में बजता घडी का अलार्म,

कटनी प्लेटफोर्म ,

चाय -पान की दूकान,

पास खड़ा एक नौजवान,

अपनी खामोशी को तोडा,

नजदीक आ कर बोला-

बाबू जी बूट पोलिश,

हमने अपनी असहमति जताई 
,
नकारात्मक भाव से गर्दन हिलाई,

वह फिर बोला-बाबू जी पाँच रुपये लूँगा .

जूतों को चमका दूंगा,

बाबू जी स्कूल की सीढियाँ मै भी चढ़ा हूँ,

बारहवीं तक मै भी पढ़ा हूँ,

सोचा था और पढूंगा 
,
कोई बड़ा अधिकारी बनूँगा,

पर मेरी मजबूरी के आगे,

मेरी किस्मत झुक गई,

पढाई बीच में ही रुक गई,

बाबू जी घर में ,

एक छोटी बहन,एक छोटा भाई है,

पर खर्च के लिए सिर्फ मेरी ही कमाई है,

आप जैसे ग्राहकों की,

आस में दिन ढलता है,

दिन भर की कमाई से,

सभी का पेट पलता है,

बाबू जी, पाँच के बजाय

दो देंगें चल जायेगा,

पर यदि मन करेंगे,

तो इस गरीब को खल जाएगा,

वह अपनी इस राम कहानी से,

मेरे धैर्य को तौल रहा था,

और मेरे पांव में बंधे,

जूतों को खोल रहा था,

मै चाह कर भी उसे,

रोक नहीं पा रहा था,

क्योंकि उसकी सूनी आँखों में

मुझे,अपना भविष्य,

साफ़ नज़र आ रहा था,

               *जय सिंह "गगन"*

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