बघेली कविता
कसि कइ जई स्कूल मस्टरबे आंखी काडि निहारत हँ.
बाबू पंडित जी मारत हँ बाबू पंडित जी मारत हँ.
चारि महीना बीति ग अजुऔ कखागघा लिखवावत हँ.
नहीं बनत जब पून्छित थे त उ खिसियाई के धावत हँ.
चौथा कइ किताब पढ़वैही अँग्रेज़ी लिखवइहीं.
थोरौक जो ग़लती भइ त नटई डंडा नईहीं.
दिन भर सोबत हँ कुर्सी पर पान-सुपारी झारत हँ.
बाबू पंडित जी मारत हँ बाबू पंडित जी मारत हँ.
मरिहीं गप्प सड़ाका दिन भर, पांसा दिन भर खेलिहीं.
हमका पचेन क खेलत देखिहीं लइ कइ छड़ी उकेलिहीं.
दुपहर कइ स्कूल म अईहीं बाँधे बड़ा मुरइठा.
हम जो लेट भयेन त कहिहीं कान पकड़ि कइ बइठा.
घरे गाउ क गुस्सा सगला हमरेन उपर उतारत हँ.
बाबू पंडित जी मारत हँ बाबू पंडित जी मारत हँ.
जब से कक्षा म अइहीं त अँउघईहीं जमुअईहीं.
खोलि कइ डब्बी नगद बूंक् भर चून औ सुरती खईही.
थून्कि-थून्कि कइ भरे हँ सगळे भुइयाँ खिड़की भीती म.
प्रेम से धूँकत बीड़ी घुमिही चारिउ कईति पछीती म.
जइसइ कतना थके हों घर म अइसन टांग पसारत हँ.
बाबू पंडित जी मारत हँ बाबू पंडित जी मारत हँ.
लरिकन से गोबर टरबईहीं पोतबईहीं झरबईहीं.
खाइ के झउआ भर अईहीं त डेकरि-डेकरि डेरबईहीं.
सगली राजनीति भारत क एहीं आइ बतईहीं.
ज़ोर-ज़ोर से हँसिही एहीं ई खोतड़ पिरबईहीं.
हम बोली त लइकइ गोदा ई आरती उतरात हँ.
बाबू पंडित जी मारत हँ बाबू पंडित जी मारत हँ.
लरिका औ मास्टर अइसन हँ जइसइ मूस- बिलारी.
ताड़े रहत हँ मौका मिलतइ पकड़ि कइ कान उखारी.
तूँ अइसने पढाई म अब पास क आस निहारे न.
नाउ कटाइ ले नहीं त देखा फेल होब त मारे न.
हर चउथे दिन स्कूली म अर्जी छोडि नदारत हँ.
बाबू पंडित जी मारत हँ बाबू पंडित जी मारत हँ.
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