बघेली ग़ज़ल
महतारी कइ कनिया भूलि चलें दादू.
बस्ता क टागि कइ स्कूलि चलें दादू.
पहिरि लिहिनि सल्ट पैंट तानि लिहिनि मोज़ा,
झारि कइ देहें क धूरि चलें दादू.
आँजि लिहिनि काज़र औ पारि लिहिनि पाटी,
खाइ कइ कठउता भर फूलि चलें दादू.
रिक्शा क खर्चा औ फीस केर बर्छी,
सन्चै करेजा म हूरि चलें दादू.
क ख औ ग घ म बूडि गये अइसन,
पहिलै म चारि साल झूलि चलें दादू.
बेन्चि कइ किताबन क खाइ लिहिन गुल्फी.
मानि कइ पढ़ाई फिजूलि चलें दादू.
बाप अउर पुरिखन कबनारहा जतना,
मेटि बेडि सगला निर्मूलि चलें दादू.
जय सिंह "गगन"
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