शुक्रवार, 27 जनवरी 2012

सोचो यदि........


   कविता
                

दिल का एक झरोखा मुझसे,करता प्रश्न अनोखा मुझसे.

जीवन जीने का हर सपना कल को चकनाचूर हुआ तो,


                 यदि मैं इनसे दूर हुआ तो यदि मैं इनसे दूर हुआ तो,



इंतज़ार आने का लेकर जाने कहाँ-कहाँ रोएगी.

मुझको अपने पास ना पा कर,शायद मेरी माँ रोएगी.


पत्नी की बाँहों में सजकर,शायद उसका कंगना रोए.

इंतज़ार में राखी ले कर,शायद मेरी बहना रोए.


रोएँ शायद भाई मेरे,जिनका मुझपर उपकार बहुत है.

घर का नौकर रमुआ रोए,जिसको मुँझसे प्यार बहुत है.


रोएँ शायद गुरुजन जिनसे शिक्षा मैने पाई थी.

जिनके कठिन परिश्रम ने यह तालीम सिखाई थी.


रोएँ श्यद संघी-साथी बिस्तर और बिछौना रोए.

शायद मेरी राह ताकता मेरा सुघड़-सलोना रोए.


जितने ख्वाब सजे थे सबके,उनको करके चूर चला.

तुम रोवो या ना रोवो पर,मैं तो तुमसे दूर चला.


अश्क बहा कर प्यार हमारा इन आँखों से मत धोना.

यह जीवन की सच्चाई है,इस पर आख़िर क्या रोना.


मुझको भी मालूम नही है,किस पथ जाने कहाँ मिलूँगा.

एक अलग ही दुनिया होगी तुम सबसे मैं वहाँ मिलूँगा.


चलते-चलते थक कर शायद,रुकने को मज़बूर हुआ तो.

यदि मैं इनसे दूर हुआ तो,यदि मैं इनसे दूर हुआ तो

                       जय सिंह "गगन"

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