शुक्रवार, 27 जनवरी 2012

कर्मी ब न इ क ठाने लरिका


बघेली कविता



कर्मी ब न इ क ठाने लरिका,गली-गली मंडराने लरिका.

कर्मी ब न इ क ठाने लरिका,गली-गली मंडराने लरिका.




झर-झर बहई पसीना देखा,डटे हँ ताने सीना देखा.

सूची क हँ ताड़े बपुरे झांकिया आँखी गाड़े बपुरे.

ताके बोरी बंडा बाबू,सोंटी रहे हँ ठंडा बाबू.

लागाँ सबै अघोरी जैसन बिचका पहिल कलोरी जैसन.


भे ड़ी नि साही भरे हँ सगले होटल पान दुकाने लरिका.

कर्मी ब न इ क ठाने लरिका,गली-गली मंडराने लरिका.


मुहु रोमन केर बनाए सगले,पान हमां लभ्राए सगले.

आपन दीन्हें प्राण हमाँ सब,साहब क पछियान हमां सब.

रूपिया क हँ अयिठे साहब,हमां पटौहें बइठे साहब.

पईसा सगळा धरा हई आगे,रोबत पत्तये परा हई आगे.


मेहरि क गहना सब लैकै पहुन्ची गएँ बनियाने लरिका.

कर्मी ब न इ क ठाने लरिका,गली-गली मंडराने लरिका.


कम एकौ अब गहब ना देखा,साहब से हम कहब ना देखा.

पौआ अद्धी छानिहीं साहब,तबई जाई कई मनिहीं साहब.

नाउ कहौं न कतई इ ताका,अग्रीगेट न घ ट इ इ ताका.

झूठौ जुगुति बताई रहे हँ,सब आपन कास खाई रहे हँ.


पूजी रहे बबुअन क बपुरे आपन देउता माने लरिका.

कर्मी ब न इ क ठाने लरिका,गली-गली मंडराने लरिका.


आपन हित सब साधे घूमा,हर सदस्य पद बाधे घूमा.

जेबा एन्कर भारी होई,दुलही तब अधिकारी होई.

साजु अउर सिंगार देखि कई,टपकै एन्कर लार देखिकै.

सगळा नजरि हँ गाड़े देखा,मिशिर शुकुल औ पांडे देखा.


मरजादा सब लूंडा लगी गई बिढ़ता एहै कमाने लरिका.

कर्मी ब न इ क ठाने लरिका,गली-गली मंडराने लरिका.


कमें घटे कुछु बोली साहब,मुहु आपन कुछु खोली साहब.

जर जमीन जोरू सब बिकिगें,घर दुआर गोरू सब बिकिगें.

नोट ता बस एक झाऊ अ इ चाही,उपाध्यक्ष क पौ अ इ चाही.

रिसिआने अध्यक्ष मनाबा.एक बोतल अंगरेजी लाबा.


भूल-भुलैया बना हई जनपद सगळा हमां हेराने लरिका.

कर्मी ब न इ क ठाने लरिका,गली-गली मंडराने लरिका.


कहौं चौह अब हिली न देखा.बोट त कैसौ मिली न देखा.

माग इ जाबे लाठी पौबे ,सौहें जरत लुआठी पौबे.

हम तौ सौहें कहिथे सुनिले,साथ माँ तोहरे रहिथे सुनिले.

हम प्रचार माँ जाब न कैसौ,लाठी डंडा खाब न कैसौ.


"गगन"फूटि ले तोहुं का हँ सगळा चीन्हें जाने लरिका.

कर्मी ब न इ क ठाने लरिका,गली-गली मंडराने लरिका.

                                               *जय सिंह "गगन"*

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